Traditional food and their importance, Food Fortification

Traditional food and their importance, Role of food fortification, Aspects of "Eat right" Challenges in India, Tribal foods of Madhya Pradesh.

पारंपरिक भोजन और उनका महत्व

पारंपरिक भोजन भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है जो न केवल स्वाद के लिए बल्कि स्वास्थ्य, सामाजिकता और सांस्कृतिक पहचान के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत में पारंपरिक भोजन क्षेत्रीय विविधता को दर्शाता है, जैसे कि दक्षिण भारत में चावल आधारित व्यंजन (डोसा, इडली), उत्तर भारत में गेहूं आधारित रोटी और सब्जियां, पूर्व में मछली और चावल, और पश्चिम में मसालेदार गुजराती थाली। ये व्यंजन पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और स्थानीय जलवायु, मिट्टी और जीवनशैली के अनुकूल हैं।

महत्व:

  1. पोषण: पारंपरिक भोजन में मसाले (हल्दी, जीरा, अदरक), दालें, अनाज और मौसमी सब्जियां शामिल होती हैं जो संतुलित आहार प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, मोटे अनाज जैसे बाजरा और ज्वार फाइबर और खनिजों से भरपूर होते हैं।
  2. सांस्कृतिक पहचान: भोजन के माध्यम से त्योहार, परंपराएं और रीति-रिवाज जीवित रहते हैं। जैसे, होली में गुजिया और दीपावली में मिठाइयां।
  3. प्राकृतिक संतुलन: ये व्यंजन मौसम के अनुसार तैयार किए जाते हैं, जैसे ठंड में गर्माहट देने वाले मसाले और गर्मी में ठंडक देने वाला नारियल या दही।
  4. आध्यात्मिक महत्व: भारतीय संस्कृति में भोजन को पवित्र माना जाता है। इसे अन्नपूर्णा देवी का आशीर्वाद समझा जाता है और भोजन से पहले प्रार्थना की परंपरा है।


खाद्य संवर्धन की भूमिका ((Food Fortification)

खाद्य संवर्धन (Food Fortification) वह प्रक्रिया है जिसमें खाद्य पदार्थों में आवश्यक पोषक तत्व (विटामिन, खनिज) जोड़े जाते हैं ताकि पोषण की कमी को दूर किया जा सके। भारत जैसे देश में, जहां कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (माइक्रोन्यूट्रिएंट डेफिशिएंसी) एक बड़ी समस्या है, खाद्य संवर्धन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भूमिका:

  1. कुपोषण से लड़ाई: भारत में आयरन, विटामिन A और आयोडीन की कमी आम है। नमक में आयोडीन, तेल में विटामिन A और D, और आटे में आयरन जोड़कर इन कमियों को कम किया जा रहा है।
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार: संवर्धित भोजन बच्चों में एनीमिया, गर्भवती महिलाओं में पोषण की कमी और बुजुर्गों में कमजोरी जैसी समस्याओं को रोकता है।
  3. आर्थिक रूप से सस्ता: यह बड़े पैमाने पर लोगों तक पोषण पहुंचाने का किफायती तरीका है, खासकर गरीब वर्ग के लिए।
  4. जागरूकता की जरूरत नहीं: चूंकि यह रोजमर्रा के भोजन में शामिल होता है (जैसे आयोडाइज्ड नमक), लोगों को अपनी आदतें बदलने की जरूरत नहीं पड़ती।
  5. सरकारी पहल: भारत सरकार ने FSSAI के तहत "फोर्टिफाइड राइस" और "डबल फोर्टिफाइड नमक" जैसी योजनाएं शुरू की हैं।


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भारत में "खाएं सही" चुनौतियों के पहलू

"खाएं सही" (Eat Right) अभियान भारत में स्वस्थ खान-पान को बढ़ावा देने के लिए FSSAI द्वारा शुरू किया गया है। हालांकि, इसके सामने कई चुनौतियां हैं:

  1. जागरूकता की कमी: ग्रामीण और शहरी गरीब आबादी में पोषण के महत्व और अस्वास्थ्यकर भोजन के नुकसान के बारे में जानकारी का अभाव है।
  2. जंक फूड का प्रचलन: फास्ट फूड और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की बढ़ती लोकप्रियता, खासकर युवाओं में, पारंपरिक भोजन को पीछे छोड़ रही है।
  3. आर्थिक असमानता: पौष्टिक भोजन (फल, सब्जियां, डेयरी) महंगा होने के कारण निम्न आय वर्ग इसे खरीदने में असमर्थ है।
  4. सांस्कृतिक बाधाएं: कुछ क्षेत्रों में मांसाहार या शाकाहार को लेकर धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं खान-पान को प्रभावित करती हैं।
  5. शहरीकरण: व्यस्त जीवनशैली के कारण लोग तैयार खाद्य पदार्थों पर निर्भर हो रहे हैं, जिससे मोटापा और डायबिटीज बढ़ रहा है।
  6. शिक्षा और प्रशिक्षण: खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता के मानकों को लागू करने के लिए रेस्तरां और स्ट्रीट वेंडर्स को प्रशिक्षण की कमी है।

समाधान के प्रयास:

  • स्कूलों में पोषण शिक्षा।
  • स्ट्रीट फूड वेंडर्स के लिए "हाइजीन रेटिंग" और प्रशिक्षण।
  • खाद्य लेबलिंग को सरल और अनिवार्य करना।


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मध्य प्रदेश के आदिवासी भोजन

मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय (जैसे गोंड, बैगा, कोल, भील) अपने पारंपरिक भोजन के लिए जाने जाते हैं, जो प्रकृति से जुड़ा हुआ है और स्थानीय संसाधनों पर आधारित है। यह भोजन सरल, पौष्टिक और मौसमी होता है।

प्रमुख व्यंजन:

  1. कोदो-कुटकी की खिचड़ी: कोदो और कुटकी मोटे अनाज हैं जो फाइबर, प्रोटीन और खनिजों से भरपूर होते हैं। इन्हें दाल और स्थानीय सब्जियों के साथ पकाया जाता है।
  2. मक्के की रोटी: मक्का आदिवासियों का मुख्य अनाज है, जिसे रोटी या भुट्टे के रूप में खाया जाता है।
  3. पेज: चावल या मक्के से बना एक गाढ़ा पेय, जो ऊर्जा प्रदान करता है और गर्मियों में ठंडक देता है।
  4. महुआ का उपयोग: महुआ के फूलों से शराब (महुआ दारू) और मिठाई बनाई जाती है। यह पेड़ आदिवासियों के लिए आर्थिक और खाद्य स्रोत है।
  5. जंगली सब्जियां और मांस: बरसात में जंगली पत्तियां (कोचई, चकौर), कंद (अरबी, जिमीकंद) और शिकार से प्राप्त मांस (जंगली सूअर, हिरण) खाया जाता है।
  6. भुना हुआ भोजन: मछली, चूहे या पक्षियों को आग पर भूनकर खाने की परंपरा है।
  7. चींटनी: लाल चीटियों से बनी चटनी, जो प्रोटीन का अच्छा स्रोत है और स्वाद में तीखी होती है।

विशेषताएं:

  • प्रकृति पर निर्भरता: जंगल से प्राप्त कंद, फल (आम, जामुन, बेर), और शहद मुख्य भोजन का हिस्सा हैं।
  • पोषण मूल्य: मोटे अनाज और जंगली खाद्य पदार्थ विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं।
  • खाना पकाने का तरीका: अधिकतर भोजन भूनकर, उबालकर या भाप में पकाया जाता है, जिससे पोषक तत्व बरकरार रहते हैं।
  • सामुदायिकता: भोजन को समुदाय के साथ बांटने की परंपरा है, जो सामाजिक एकता को बढ़ाती है।

चुनौतियां:

  • आधुनिकीकरण के कारण पारंपरिक भोजन की लोकप्रियता कम हो रही है।
  • जंगलों का घटना इनके खाद्य स्रोतों को प्रभावित कर रहा है।
  • बाजार आधारित भोजन (जंक फूड) का प्रभाव बढ़ रहा है।

निष्कर्ष:

मध्य प्रदेश के आदिवासी भोजन का संरक्षण जरूरी है, क्योंकि यह न केवल पोषण प्रदान करता है बल्कि उनकी सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखता है। सरकार और NGOs को इसे बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए, जैसे कि कोदो-कुटकी को बाजार में प्रोत्साहित करना।


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